संस्कृत केवल धार्मिक तथा साहित्यिक भाषा ही नहीं अपितु यह सभी प्रकार के विज्ञान, कानून, न्याय, प्रशासन, अर्थशास्त्र, तर्क, कलाओं का अथाह भण्डार है तथा भारतीय ज्ञान परम्परा की धुरी है। प्राचीन ग्रंथों में हमें बिजली का आविष्कार कैसे हुआ, यह अगस्त्य संहिता में विस्तार से प्राप्त होता है जिसमें मंत्र के माध्यम से पता चलता है कि कॉपर एवं जिन्क से विद्युत पैदा होती है। राजा भोज द्वारा लिखित यूक्तिकल्पतरू तथा महर्षि भारद्वाज के वमानिकाशास्त्र में जहाज निर्माण की प्रक्रिया के बारे में विस्तार से बताया गया है। पिंगला ऋषि द्वारा कोडिंग के बारे में बताया गया है। प्राचीन भारतीय रसायन वैज्ञानिक नागार्जुन, बाणभट्ट, गोविन्दाचार्य, यषोधर, रामचन्द्र, सोमदेव आदि ने रसायन में आविष्कार किये हैं। रस रत्नाकर, आरोग्यमंजरी, रत्नसमुच्य, रस प्रकाश आदि ग्रंथों में चिकित्सा तथा दवा की गहन जानकारियां वर्णित हैं। लीलावती जैसे संस्कृत के प्राचीन गंथों से गणित की सभी शाखाओं के बारे में विस्तृत ज्ञान प्राप्त होता है। भास्कराचार्य द्वारा रचित सिद्धांत शिरोमणी से बीजगणित का ज्ञान प्राप्त होता है। महर्षि कणाद से हमें पदार्थ, अणु तथा परमाणु का ज्ञान प्राप्त होता है। सुश्रुत संहिता में हमें सर्जरी की जानकारी मिलती है। भरत के नाट्यशास्त्र, चाणक्य के अर्थशास्त्र, पाणिनी की अष्टाध्यायी, पिंगल के छन्दशास्त्र, चरक संहिता, माया मथा, न्यायसूत्र, कामसूत्र, आदि प्राचीन ग्रंथों के अध्ययन से हमें हमारी गौरवशाली संस्कृति का पता चलता है। अत: यह पाठ्यक्रम अधिगमकर्ताओं के लिए उपयोगी सिद्ध होगा क्योंकि वर्तमान में समाज अपनी जड़ों की ओर लौटते हुए अपनी प्राचीन ज्ञान परम्परा में निहित विज्ञान के अन्वेषण में जुटा है। राष्ट्रीय शिक्षा नीति 2020 में भी इस पर जोर दिया गया है कि भारतीय ज्ञान परंपरा में निहित विज्ञान पर चिंतन हो और उससे रोजगार परक पाठ्यक्रमों का संचालन किया जाए। समाज के किसी भी संवर्ग का कोई भी व्यक्ति इस कार्यक्रम में प्रवेश के अर्ह होगा तथा संस्कृत साहित्य में निहित विज्ञान राशि से संपन्न इस कार्यक्रम का अध्ययन कर लेने पर स्वयं ज्ञान संपन्न होकर समाज को भी प्रेरणा देने में सक्षम हो सकेगा।
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